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वृषा॑सि दि॒वो वृ॑ष॒भः पृ॑थि॒व्या वृषा॒ सिन्धू॑नां वृष॒भः स्तिया॑नाम्। वृष्णे॑ त॒ इन्दु॑र्वृषभ पीपाय स्वा॒दू रसो॑ मधु॒पेयो॒ वरा॑य ॥२१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛṣāsi divo vṛṣabhaḥ pṛthivyā vṛṣā sindhūnāṁ vṛṣabhaḥ stiyānām | vṛṣṇe ta indur vṛṣabha pīpāya svādū raso madhupeyo varāya ||

पद पाठ

वृषा॑। अ॒सि॒। दि॒वः। वृ॒ष॒भः। पृ॒थि॒व्याः। वृषा॑। सिन्धू॑नाम्। वृ॒ष॒भः। स्तिया॑नाम्। वृष्णे॑। ते॒। इन्दुः॑। वृ॒ष॒भ॒। पी॒पा॒य॒। स्वा॒दुः। रसः॑। म॒धु॒ऽपेयः॑। वरा॑य ॥२१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:44» मन्त्र:21 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:21


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय का कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषभ) शत्रुओं के सामर्थ्य के प्रतिबन्धक, ऐश्वर्य्य से युक्त ! जिससे आप (दिवः) सूर्य्य के (वृषभः) बलिष्ठ और श्रेष्ठ (पृथिव्याः) भूमि से (वृषा) वर्षानेवाले और (सिन्धूनाम्) नदियों वा समुद्रों के (वृषा) वर्षानेवाले और (स्तियानाम्) मिले हुए नहीं चलने और चलनेवाले प्राणी और अप्राणियों के (वृषभः) अत्यन्त करनेवाले (असि) हैं (ते) आप (वराय) उत्तम (वृष्णे) सुख के वर्षानेवाले के लिये (पीपाय) पान को (स्वादुः) स्वादु से युक्त (इन्दुः) सोमलता का (रसः) रस (मधुपेयः) सहत के साथ पीने योग्य हो ॥२१॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आप बिजुली, भूमि, नदी, समुद्र, अन्तरिक्ष, स्थावर और जङ्गम पदार्थों की विद्या और उपयोग को जानिये तो आपको बड़ा आनन्द प्राप्त होवे ॥२१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कीदृशः स्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे वृषभेन्द्र ! यतस्त्वं दिवो वृषभः पृथिव्या वृषा सिन्धूनां वृषा स्तियानां वृषभोऽसि ते वराय वृष्णे पीपाय स्वादुरिन्दू रसो मधुपेयो रसोऽस्तु ॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषा) बलिष्ठः (असि) (दिवः) सूर्य्यस्य (वृषभः) बलिष्ठः श्रेष्ठश्च (पृथिव्याः) भूमेः (वृषा) वर्षकः (सिन्धूनाम्) नदीनां समुद्राणां वा (वृषभः) अत्यन्तं कर्ता (स्तियानाम्) संहतानां स्थावरजङ्गमानां प्राण्यप्राणिनाम् (वृष्णे) सुखवर्षकाय (ते) तुभ्यम् (इन्दुः) सोमः (वृषभ) शत्रुशक्तिबन्धक (पीपाय) पानाय (स्वादुः) स्वादुयुक्तः (रसः) (मधुपेयः) मधुना सह पातुं योग्यः (वराय) उत्तमाय ॥२१॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि त्वं विद्युद्भूमिनदीसमुद्रान्तरिक्षस्थावरजङ्गमानां पदार्थानां विद्योपयोगौ विजानीयास्तर्हि त्वां महानानन्दः प्राप्नुयात् ॥२१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जर तू विद्युत, भूमी, नदी, समुद्र, अंतरिक्ष, स्थावर व जंगम पदार्थांची विद्या व उपयोग जाणलास तर तुला खूप आनंद मिळेल. ॥ २१ ॥